Legal Process of Loan Recovery: जब कोई उधार लेने वाला (Borrower) समय पर कर्ज नहीं चुकाता और बैंक या ऋणदाता द्वारा की गई वार्ता या समझौता प्रयास (Settlement Negotiation) विफल हो जाती है, तो ऋणदाता कानूनी मार्ग अपनाता है, ताकि वह बकाया रकम की वसूली कर सके. बैंक या वित्तीय संस्था कानूनी तरीके से लोन की रिकवरी के लिए अलग-अलग मंचों का सहारा ले सकती है. इनमें प्रमुख हैं- डीआरटी (Debt Recovery Tribunal), सिविल कोर्ट और लोक अदालत. इन तीनों में कार्यप्रणाली, अधिकार क्षेत्र और समाधान की गति में अंतर होता है.
1. डीआरटी (Debt Recovery Tribunal)
डीआरटी खासतौर पर बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के द्वारा 20 लाख रुपये या उससे अधिक की रकम की वसूली के मामलों के लिए बनाई गई न्यायिक संस्था है. यह केवल लोन से जुड़े मामलों की सुनवाई करता है. इसमें प्रक्रिया तेज होती है और फैसले अपेक्षाकृत जल्दी आते हैं. इसमें अपील के लिए DRAT (Debt Recovery Appellate Tribunal) का प्रावधान है.
2. सिविल कोर्ट (Civil Court)
यदि लोन की रकम 20 लाख से कम है, तो बैंक या कर्जदाता सामान्य सिविल कोर्ट में मामला दर्ज कर सकते हैं. सिविल कोर्ट की प्रक्रिया डीआरटी के मुकाबले धीमी होती है, क्योंकि वहां विविध प्रकार के केस चलते हैं. छोटे कर्ज और व्यक्तिगत लोन के मामले अधिकतर यहीं दर्ज होते हैं.

3. लोक अदालत (Lok Adalat)
यह एक वैकल्पिक विवाद निपटान मंच है, जहां बिना कोर्ट फीस दिए आपसी सहमति से मामले सुलझाए जाते हैं. यह मंच तेज, सरल और सुलह-प्रधान प्रक्रिया अपनाता है. बैंक अकसर डिफॉल्टरों को बुलाकर यहां समझौता करते हैं, ताकि लोन बिना लंबी कानूनी प्रक्रिया के वसूल हो सके.

जहां डीआरटी बड़े कर्ज मामलों में कारगर है, वहीं सिविल कोर्ट सामान्य न्याय प्रक्रिया अपनाता है और लोक अदालत समाधान का सबसे सरल व गैर-विवादास्पद माध्यम है. सही मंच का चयन केस की प्रकृति और राशि के आधार पर किया जाता है.
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